चार्वाक की तत्व मीमांसा
क्योंकि चार्वाक भौतिकवादी ,इहलोकवादी, जड़वादी हैं । इसलिए वे तत्व मीमांसा में परम तत्व की खोज इहलोक में करते हैं । उनकी तत्व मीमांसा ,मूल्य मीमांसा और ज्ञान मीमांसा से जुड़ेंगे जहां वह उसे परम तत्व मानेंगे जिसका वह अनुभव कर पाएंगे । वह उसी की सत्ता को मानेंगे जिसका वह अनुपालन कर सकें ।चार्वाक ,जीव, जगत और ब्रह्म में केवल जगत के विचार को मानते हैं । वे केवल जगत की सत्ता को मांगते हैं तथा जीव ,आत्मा, ब्रह्म( ईश्वर) के विचार को नकारते हैं ,क्योंकि उनका साक्षात्कार करना संभव नहीं है।
चार्वाक के जगत सम्बन्धी-
वैदिक दर्शन में दुनिया 5 तत्वों से मिलकर बनी है ऐसा माना जाता है। जिसमें पृथ्वी, अग्नि, वायु ,जल ,आकाश आदि सम्मिलित हैं ।लेकिन चार्वाक उनमें से केवल 4 तत्वों की ही स्वीकार करते हैं। वह आकाश को तत्व के रूप में स्वीकार नहीं करते क्योंकि आकाश का केवल अनुमान है वह शब्द प्रमाण पर आधारित नहीं है। चार्वाक कहते हैं, दुनिया भौतिक शक्तियों से बनी हैं ।अलौकिक शक्ति की इस दुनिया में कोई आवश्यकता नहीं अलौकिक शक्ति दुनिया में केवल भ्रम मात्र है चार तत्वो में यह दुनिया व शरीर ही बना है । यह दुनिया यही बनी है और यहीं समाप्त हो जाएगी ।
चार्वाक के ब्रह्म( ईश्वर ) संबंधी विचार-
चार्वाक ईश्वर अलौकिक शक्ति के विचार को नकारते हैं क्योंकि ईश्वर उपमान, अनुमान और सत्य प्रमाण पर आधारित है ।ईश्वर का साक्षात्कार करना संभव नहीं है । जब चार्वाक से पूछा गया यदि नहीं है तो यह जगत कैसे बना तो उन्होंने कहा कि यह धरती जड़त्व से मिलकर बनी है । इस दुनिया को बनाने के लिए तथा नष्ट करने के लिए ईश्वर की आवश्यकता नहीं है। जगत व ईश्वर से जुड़ा चार्वाक का मत स्वभाव वादी कहलाता है क्योंकि एक तरफ सत्यवादी और दूसरी तरफ अदृश्य तावादी इसलिए चार्वाक का दर्शन संभव बनाता है इस विचार को रखते हुए चार्वाक परलोक को नकार देते हैं वे स्वर्ग लोक, नरक और कर्म फल को नकारते हैं वे कहते हैं सब पाखंडीयों द्वारा बनाया गया विचार है।

चार्वाक का आत्मा पर विचार
क्योंकि चार्वाक इहलोक वादी, प्रत्यक्ष वादी हैं तो वह पहले नजर में इसे नकारते हैं परंतु चार्वाक अनात्मवादी नहीं है अर्थात आत्मा के अस्तित्व को नकारते नहीं है बल्कि आत्मा को उस स्वरुप में नकारते हैं जैसा वेदो मे है । वह कहते हैं आत्मा शरीर का भाग अर्थात हिस्सा होता है वह शरीर के अंतर्गत ही होता है वे कहते हैं शरीर के अंदर जो चेतना है वही आत्मा है । 4 तत्वों से बना शरीर ज्ञान इंद्रियों को लाता है और इंद्रियों से बनी चेतना आत्मा कहलाते हैं ।आत्मा शरीर का चैतन्य भाग है। चार वेदों मे दर्शाये गए आत्मा के विचार को नकारते हैं।यहां आत्मा को शरीर से अलग बनाया गया है। माना गया है जहां आत्मा को शुद्ध माना गया है। वह कहते हैं शरीर ही आत्मा है और आत्मा ही शरीर है ।
जैन भट्ट नामक विद्वान ने आत्मा के संदर्भ में चार्वाक के विचार को दो भागों में बांटा
1) धूर्त चार्वाक – चेतना युक्त शरीर ही आत्मा है ।
2) सुशिक्षित चार्वाक- जब तक शरीर है तब तक आत्मा है शरीर नष्ट होने पर आत्मा भी नष्ट हो जाती है अतः आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता आत्मा नित्य शाश्वत नहीं है ।
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