आल्हा और ऊदल मध्यभारत में स्थित ऐतिहासिक बुन्देलखण्ड के अहीर[1][2] सेनापति थे और अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। आल्हा के छोटे भाई का नाम ऊदल था और वह भी वीरता में अपने भाई से बढ़कर ही था।
जगनेर के राजा जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की 52 लड़ाइयों की गाथा वर्णित है। जिसका संकलन, 1865 में फर्रुखाबाद के तत्कालीन कलेक्टर, सर चार्ल्स ‘इलियट’ ने अनेक भाटों की सहायता से कराया था। सर जार्ज ‘ग्रियर्सन’ ने बिहार में इण्डियन एण्टीक्वेरी तथा ‘विसेंट स्मिथ’ ने बुन्देलखण्ड लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया में भी आल्हाखण्ड के कुछ भागों का संग्रह किया था।
वाटरफील्डकृत अनुवाद “दि नाइन लेख चेन” (नौलखा हार) अथवा “दि मेरी फ्यूड” के नाम से कलकत्ता-रिव्यू में सन १८७५-७६ ई० में इसका प्रकाशन हुआ था।[3] इलियट के अनुरोध पर डब्ल्यू० वाटरफील्ड ने उनके द्वारा संग्रहीत आल्हखण्ड का अंग्रेजी अनुवाद किया था। जिसका सम्पादन ‘ग्रियर्सन’ ने १९२३ ई० में किया।यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणोन्मत्त करने के लिए ब्रिटिश गवर्नमेंट को इस ‘आल्हाखण्ड’ का सहारा लेना पड़ा था।यह वीर रस का रसायण है । जस्सराज तथा बच्छराज बनाफर गोत्रीय यदुवंशी/अहीर थे।
आल्हा सामान्य परिचय
नाम | आल्हा |
पिता का नाम | दसराज / दक्षराज |
माता का नाम | देवला |
पत्नी का नाम | सोना |
जाति | अहीर |
जन्म स्थान | महोबा , उत्तर प्रदेश |
पिता का जन्म स्थान | वराप्ता गांव, बक्सर, बिहार |
भाई | ऊदल |
ग्रन्थ | अल्हाखण्ड |
जन्मतिथि | 25 मई 1140 ई. |
मुख्य प्रतिद्वंदी | पृथ्वीराज चौहान |
आल्हा जयंती | 25 मई |
ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते हुए ऊदल वीरगति प्राप्त हुए आल्हा को अपने छोटे भाई की वीरगति की खबर सुनकर अपना अपना आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े आल्हा के सामने जो आया मारा गया 1 घण्टे के घनघोर युद्ध की के बाद पृथ्वीराज और आल्हा आमने-सामने थे दोनों में भीषण युद्ध हुआ पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हुए आल्हा के गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया और बुन्देलखण्ड के महान योद्धा आल्हा ने नाथपन्थ स्वीकार कर लिया |
उत्पत्ति
आल्हा और ऊदल, चन्देल राजा परमल के सेनापति दसराज के पुत्र थे। वे बनाफर वंश के थे| बनाफर शब्द दो शब्दों का मेल है एक वन दूसरा अफर , इसमें वन का अर्थ जंगल और अफर का अर्थ अहीर होता है | रेवाड़ी राजवंश के राजाओं का गोत्र भी अफरिया था | दसराज और वसराज का जन्म बिहार राज्य के बक्सर जिले के बराप्ता नाम गांव में अहीर (ग्वाल) परिवार में हुआ था ।
आल्ह खण्ड
क्या ताकत है इस पाजी कि, जो ये समाप्ती बन जाय ।
आखिर बेटा है अहीर का, गौवे रोज चरावे जाय।।
खेल औरतों में नित खेले , निर्लज ग्वाल नीच मक्कार |
सभापती जो इसे बनायो , तो यहां खूब चले तलवार||[6][7]
वन में फिरें वनाफर यौद्धा , लिए हाथ में धनुष तीर ।
दोऊ भ्राता गइयन के चरबय्या आल्हा-ऊदल वीर अहीर ।।
कुछ इतिहासकार इनका निकासा बक्सर(बिहार) का मानते हैं। इनके लिए दलपति अहीर की पुत्रियां ‘दिवला’ तथा ‘सुरजा’ व्याही थीं, जिन्हें दलपति ग्वालियर( गोपालपुर )का राजा बताया गया है। दुर्धर्ष योद्धा दस्सराज-बच्छराज परमाल के यहाँ सामन्त/सेनापति थे। जिन्हें माढ़ोंगढ़ के राजा जम्बे के पुत्र कडिंगाराय ने सोते समय धोखे से गिरफ्तार करके कोल्हू में जिंदा पेर कर खोपड़ी पेड़ पर टँगवा दी थी। जिसका बदला पुत्रों, आल्हा-ऊदल और मलखे-सुलखे ने कडिंगा और उसके बाप को मारकर लिया और इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया कि अहीर 12 वर्ष तक भी अपना बदला नहीं भूलता।
जो इस बात की पुष्टि करता है की आल्हा उदल अहीर जाति के थे |
लड़ाई
स्वाभिमानी वीर आल्हा-ऊदल ताउम्र परमाल तथा कन्नौज के राजा जयचन्द के विश्वसनीय सेनापति बने रहे। जबकि मलखान ने सिरसा में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। कन्नौज नरेश जयचन्द, सम्राट पृथ्वीराज के मौसेरे भाई थे जिनकी पुत्री संयोगिता को पृथ्वीराज द्वारा भगाना, दोनों के बीच वैमनष्यता का कारण बना था। जिसका कुफल सारे देश को भोगना पड़ा। संयोगिता अपहरण के समय ही ‘एटा’ जनपद में रुस्तमगढ़ के पास पृथ्वीराज के दस्ते से दुस्साहसपूर्वक टकराते हुए जखेश्वर यादव (जखैया) शहीद हुआ था। जिसकी जात ककराला और पैंडत (फिरोजाबाद) में आज भी होती है। ‘बनाफर’ वंश को ओछा (तुच्छ) समझकर राजा इन्हें अपनी कन्याएँ ब्याहने में हिचकते थे।
किन्तु इन्होंने तलवार के बल पर अधिकांश राजाओं को अपना करद बनाकर उनकी लड़कियां व्याही थीं। जिसकी गवाही आल्हखण्ड की यह निम्न पंक्तियां स्वयं देती हैं…
__जा गढ़िया पर चढ़े बनाफर,ता पर दूब जमी है नाय।
दृष्टि शनीचर है ऊदल की,देखत किला क्षार है जाय।।
स्वयं पृथ्वीराज चौहान को आल्हा-ऊदल की तलवार के आगे विवश होकर, न चाहते हुए भी, अपनी पुत्री बेला, चन्द्रवंशी ‘परमाल’ के पुत्र ब्रह्मा को व्याहनी पड़ी थी। परमाल की पुत्री ‘चन्द्रावलि’ बाँदोंगढ़ (बदायूं) के राजकुमार इंद्रजीत यादव को व्याही थी। उरई का चुगलखोर राजा ‘माहिल’ परिहार स्वयं अपने बहिनोई राजा ‘परमाल’ से डाह मानते हुए उनके विरुद्ध ‘पृथ्वीराज चौहान’ को भड़काता रहता था। क्योंकि महोबा उसी के बाप ‘वासुदेव’ का था जिसे परमाल ने ले लिया था। सन 1182 में हुए दिल्ली-महोबा युद्ध में कन्नौज सहित यह तीनों ही राज्य वीर विहीन हो गए थे। इसी कमजोरी के कारण भारत पर विदेशी हमले शुरू हो गए थे.
References
- Sharma, Dr. Ganga Sahai (2009-02-15). Rethinking India’s Oral and Classical Epics – Draupadi Among Rajputs, Muslims, and Dalits (अंग्रेज़ी में). University of Chicago Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780226340555.
DeSaraja and Vatsaraja are born to a beautiful Abhiri(Ahir or Cowherd) named Vratapa from the village of Vaksara, whose nine-year-long nine-Durga-vow (Navadurgavrata) secured a boon from the goddess Candika of two sons like Rama and Krsna. “A king named Vasumant,” whose name means “Rich” and is otherwise unknown, was struck by her beauty and married her, and their sons, DeSaraja and Vatsaraja, then conquered Magadha and became kings (4.22-30).
- ↑ Michelutti, Lucia (2008-01-01). The Vernacularisation of Democracy: Politics, Caste, and Religion in India Page 63, 80 (अंग्रेज़ी में). Taylor & Francis, 2020. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781000084009.
1.What they know is that know that is Alha Udal were two brave Yadavs and powerful wrestlers. described as an incarnation of Balram, the brother of Krishna, and – an incarnation of Krishna. Mahadev Ghat’s religious space is also occupied by a number of tombs (samadhis) of ‘Yadav’ ascetic 2.martial oral epics: the epic o ind Udal and of Lorik. These epics, in particular rethink the classical pan-Indian Mahabharata (Hiltebeitel Hence, oral epics constituted a pathway between local Abiraday subcaste lineage identities and the compositeheritage.”
- ↑ Team, Lucknow First (2022-10-26). “आल्हा की जीवनी (Biography Of Aalha In Hindi): आल्हा-ऊदल किस जाति के थे?”. Lucknowfirst.com. अभिगमन तिथि 2023-02-24.
- ↑ Kumar, Ashish (2013-07-11). A Citygraphy of Panchpuri Haridwar. Clever Fox Publishing.
Alha and Udal were children of the Dasraj, a successful commander of the army of Chandel king Parmal. They belonged to the Banaphar community, which has its origins in the Ahir/Yadav castes. and fought against the Rajputs such as Prithviraj Chauhan and Mahil Mama.
- ↑ Sharma, Dr. Ganga Sahai (2009-02-15). Rethinking India’s Oral and Classical Epics – Draupadi Among Rajputs, Muslims, and Dalits (अंग्रेज़ी में). University of Chicago Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780226340555.
DeSaraja and Vatsaraja are born to a beautiful Abhiri(Ahir or Cowherd) named Vratapa from the village of Vaksara, whose nine-year-long nine-Durga-vow (Navadurgavrata) secured a boon from the goddess Candika of two sons like Rama and Krsna. “A king named Vasumant,” whose name means “Rich” and is otherwise unknown, was struck by her beauty and married her, and their sons, DeSaraja and Vatsaraja, then conquered Magadha and became kings (4.22-30).
- ↑ Ālhakhaṇḍa, Maṭarūlāla (1970-01-01). Asalī baṛā Ālhā khaṇḍa: – Page 390. Dehātī Pustaka Bhaṇḍāra.
क्या ताकत है इस पाजी कि, जो ये समाप्ती बन जाय । आखिर बेटा है अहीर का, गौवे रोज चरावे जाय।। खेल औरतों में नित खेले , निर्लज ग्वाल नीच मक्कार सभापती जो इसे बनायो , तो यहां खूब चले तलवार
- ↑ अत्तार, मटरूलाल (2009-11-10). असली आल्ह-खण्ड: संपूर्ण ५२ गढ़ विजय (तेईस मैदान)- Page No- 332. Dehatī Pustaka Bhaṇḍāra.